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सरकारी नियमों को ठेंगा दिखा, जंगल की 5 एकड़ जमीन घेर कर लिया अपने नाम, मामला गोड्डा जिला के पैरडीह मौजा का

सरकारी नियमों को ठेंगा दिखा, जंगल की 5 एकड़ जमीन घेर कर लिया अपने नाम, मामला गोड्डा जिला के पैरडीह मौजा का

= जल जंगल जमीन और आदिवासी हितों की रक्षा का संकल्प लेकर झारखंड राज्य का गठन हुआ। सपना था कि जो संयुक्त बिहार में ना हो सका वो झारखंड बनने के बाद शायद हो जाएगा यानि राज्य का जल जंगल जमीन हो या फिर यहाँ के आदिवासी समुदाय दोनों के अधिकारों का बखूबी खयाल रखा जाएगा। किन्तु ढाई दशक बीत जाने के बाद भी ऐसा होता दिखाई नहीं दे रहा है। ताजा मामला संथाल परगना के गोड्डा जिले का है। जहाँ गैरकानूनी रूप से जंगल की 5 एकड़ जमीन को घेर कर उसमें अपना मालिकाना अधिकार जमा लिया गया है। मामले की गंभीरता को इस तरह से समझा जा सकता है कि जहाँ किसी तरह का कोई कार्य नहीं हो सकता, जो सरकार के खाते खसरे में जंगल के रूप में दर्ज हो, उस भूमि को घेर कर उसका स्वामित्व अपने नाम कर लेना कहाँ तक तर्क संगत है। गोड्डा जिला में आयेदिन ऐसा जमीन संबंधी मामला देखने को मिलता है।

आइये जानते हैं क्या है पूरा मामला
दरअसल, नीरज हेम्ब्रम जो कि  संथाल परगना आदिवासी मूलवासी मंच के अध्यक्ष है उन्होंने अंचलाधिकारी गोड्डा को आवेदन देकर इस मामले में अविलंब जाँच कराने की मांग की थी। जिसमें उन्होंने यह लिखा है कि  गैरमजरूआ जमीन जो कि गैंजर सर्वे खतियान में पलाश जंगल के रूप में उल्लेखित है, ग्राम प्रधान द्वारा लालबिहारी सिंह के नाम से बंदोबस्त कर दिया गया है। मामला गोड्डा जिला अंतर्गत सदर प्रखंड के ग्राम पैर डीह का है। ग्राम पैरडीह मौजा-पैरडीह एक प्रधानी राजस्व गाँव है। ग्राम प्रधान हेमलता रानी पाल से जब उपर्युक्त भूमि से संबंधित प्रतिवेदन को पंजी-2 के साथ।मांग की गई तो प्रधान द्वारा स्वयं उपस्थित ना होकर अन्य व्यक्ति द्वारा अंचलाधिकारी कार्यालय को प्रतिवेदन समर्पित कर जानकारी मुहैया कराई गई। जिसमें उल्लेख है कि अनुमंडल पदाधिकारी गोड्डा के सेटलमेंट केस संख्या-367/1970-71 के आदेश से पूर्व ग्राम प्रधान द्वारा 09 नवम्बर 1970 को उक्त व्यक्ति लालबिहारी सिंह को जो उस समय सैनिक के रूप में था, के नाम बंदोबस्त किया गया है और इनका नाम रजिस्टर-2 में अंकित है। प्रधान द्वारा प्राप्त कराये गए सूचना के बाद जब अंचलाधिकारी द्वारा  वर्तमान में जब मौजा- पैरडीह, थाना न०-511 के रजिस्टर-2 का अवलोकन किया गया तो पाया गया कि प्रधान द्वारा जो भी जानकारी दी गयी थी वह बिल्कुल गलत है। रजिस्टर-2 में लालबिहारी सिंह के नाम से कोई भी जमाबंदी कायम नहीं है।

अंचलाधिकारी की जाँच में क्या मिला

अंचलाधिकारी द्वारा जब मामले को गंभीरता से जाँच कराया गया तो स्थलीय जाँच में यह बात सामने आयी कि मौजा- पैरडीह, थाना न०-511, गैरमजरूआ खाता स०-94, दाग न-507 में कुल ख़ातियानी रकवा 14 बीघा, 15 कट्ठा, 16 धूर जमीन पलाश जंगल के अंदर रकवा 5 एकड़ भूमि पर चाहरदीवारी का निर्माण कर वृक्ष लगाया गया है, जो सही  पाया गया है।

कहाँ पर है जमीन का लोकेशन

लोकेशन की बात की जाय तो यह जमीन जमुआ मिडिल स्कूल से पैरडीह जाने वाले मुख्य मार्ग पर रेलवे लाइन के बगल में अवस्थित है। उक्त जमीन को घेर कर उसका इस्तेमाल निजी हितों को साधने के लिए किया जा रहा है। मालूम हो कि बंदोबस्त में जमीन लेने वाले को उक्त ग्राम का निवासी होना आवश्यक है। ऐसे में लाल बिहारी सिंह ना तो उस मौजा का निवासी है और ना ही पैरडीह गाँव का।

आइये जानते हैं क्या है सैनिक को बंदोबस्त कराने के नियम

मालूम हो कि जब कभी भी सैनिक को जीमन बंदोबस्त करने का अधिकार जिले के उपायुक्त को होता है, किन्तु नियम को ताक पर रख कर ग्राम प्रधान द्वारा ही इस गैरमजरूआ जमीन जो कि जंगल के रूप में उल्लेखित है, सैनिक लाल बिहारी सिंह के नाम बन्दोबस्त कर दिया गया है। दरअसल, सरकर के पत्रांक- ए0/जीएम0-1/64  1551- आर। दिनांक 24.02.1964 एवं पत्रांक-239  दिनांक 01.02.1964, पत्रांक-1946/रा0, दिनांक 23.03.1963 में  उल्लेख है कि सैनिक को जमीन बंदोबस्त के ममले में उपायुक्त ही सक्षम प्राधिकार है । साथ ही राजस्व निबंधन एवं भूमि सुधार विभाग झारखंड सरकर के पत्रांक- 6144 /रा0 ,रांची दिनांक 21.12.2017 के कंडिका-3 उल्लेख है की सैनिकों के साथ सरकारी भूमि की बंदोबस्त के संबंध में सरकार द्वारा निर्गत परिपत्र संख्या-4725 दिनांक 16.08. 19, ज्ञापांक-1883/रा0 दिनांक  24.08.1990 के आलोक में वैसे सैनिक जिसकी सेवाएं आर्म फोर्स एक्ट के अंतर्गत आती है जो कम से कम 5 महीने तक लगातर आर्म फोर्स एक्ट के अंदर सेवा कर चूके हैं अथवा वीरगति प्राप्त कर चूके हैं , के परिवार के साथ या युद्ध में घायल होकर विकलांग हो गए उनके साथ ग्रामीण क्षेत्र की 5 एकड़ जमीन कृषि कार्य के लिए एवं 12.5 डिसमिल भूमि आवास के लिए उपायुक्त के स्तर से बंदोबस्त किए जाने का प्रावधान है बशर्ते कि उक्त भूमि भूमि गैरमजरूआ श्रेणी की ना हो।
फिलहाल मामला उपायुक्त के समक्ष रखा गया है, अब देखना ये है की क्या मामले का निष्पादन होता है या फिर मामला ठंडे बस्ते में चला जाता है। बहरहाल इस जमीन विवाद पर जिले के लोगों की नजर बनी हुई है।

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