भाजपा हटाओ, लूट मिटाओ!
एकता रैली
मुख्य वक्ता – कॉ दीपंकर भट्टाचार्य, महासचिव, भाकपा माले
अध्यक्षता – कॉ आनंद महतो, अध्यक्ष मासस
9 सितंबर 2024, गोल्फ ग्राउंड, धनबाद
साथियो,
मोदी सरकार ने कॉरपोरेट तबाही का जाल देश में फैला दिया है. छत्तीसगढ़ और उड़ीसा के बाद झारखंड को वह इसकी गिरफ्त में लेना चाहती है. 2019 में विपक्ष की सरकार बनते ही मोदी सरकार राजभवन का इस्तेमाल झारखंड में राजनीतिक संकट पैदा करने के लिए करने लगी. अब इस काम में मोदी ने किसान विरोधी केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान और असम के भ्रष्ट मुख्यमंत्री हिमंता बिस्व सरमा को भी लगा दिया है. चंपई सोरेन प्रकरण से साफ है कि भाजपा सत्ता के लिए किसी भी हद तक जा सकती है. बार-बार मोदी सरकार ने विधायकों की खरीद-फरोख्त की कोशिश की मगर असफल रही. ईडी, सीबीआई और राज्यपाल ने साजिश रचकर तत्कालीन मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को जेल भेज दिया. भाजपा फिर भी झारखंड की सत्ता में नहीं आ पायी. मोदी सरकार झारखंड की सत्ता के लिए इतनी बेताब क्यों है?
डबल इंजन सरकार के राज में अडाणी को दो बड़ी परियोजनाएं का उपहार मोदी ने दिया. गोड्डा पावर प्लांट की वजह से दो प्रखंडों एक दर्जन से अधिक गांवों को विस्थापन झेलना पड़ा. पावर प्लांट को गंगा और आसपास की नदियों का जल चाहिए. गोड्डा जैसा उर्वर जिला सूखा क्षेत्र में तब्दील हो रहा है. अडाणी कोयला खनन परियोजना की वजह से बड़कागांव (हजारीबाग) के कई गांवों को उजाड़ रहा है. विस्थापन के खिलाफ वहां संघर्ष जारी है. छत्तीसगढ़, उड़ीसा और झारखंड के कोयला-लोहा और बेशकीमती खनिजों पर अडाणी की नजर है.
धनबाद, बोकारो, हजारीबाग, चतरा, लातेहार, दुमका, पाकुड हर जगह कोयला खदानों को प्राइवेट हाथों दिया जा रहा है. मोदी सरकार झारखंड की सत्ता के लिए इसलिए बेताब है कि अडाणी को यहां का खनिज भंडार सौंपा जा सके . इसे लूट के बेलगाम क्षेत्र में तबदील कर सके. इसके लिए झारखंड के संघीय अधिकारों पर मोदी ने बार-बार हमला किया. विस्थापन, पलायन और बेरोजगारी की मार झेल रहे झारखंडियों का दर्द भाजपा के एजेंडे में नहीं है. अभी भी खनन परियोजनाओं, उद्योंगों और बांधों के सभी विस्थापितों को पुनर्वास नहीं मिला है, जिन्हें मिला भी है तो उन्हें भूमि का मालिकाना नहीं मिला है. वे जाति सर्टिफिकेट के लिए दर-दर भटकते हैं. झारखंड के दर्द को भाजपा सांप्रदायिकता के उन्माद से सुन्न कर देना चाहती है.
भाजपा शुरू से ही झारखंड के सर्वनाश की जाल-फांस रचती रही है. 2014 में मोदी के सत्तासीन होते ही डबल इंजन सरकार ने राज्य के कोयला-लोहा-लिग्नाइट खदानों की नीलामी शुरू की. लैंड बैंक के नाम पर सार्वजनिक जमीन की छिनतई और प्राकृतिक संसाधनों को पूंजीपतियों को सौंपने का काम रघुवर सरकार ने तेजी से शुरू कर दिया. दूसरी ओर, सीएनटी-एसपीटी एक्ट से लेकर आदिवासी विशेष न्यायालयों को कमजोर करने की कोशिश की. किसानों की जमाबंदी से लेकर गैरमजरुआ खास जमीन की रसीद पर रोक लगा दी.
आदिवासी, विस्थापित, पारा शिक्षक, सहिया, आंगनबाड़ी सेविका, रसोइया, किसान – ऐसा कौन सा तबका था जिनके आंदोलनों पर भाजपा की सरकार ने लाठियां-गोलियां नहीं चलाई? जेपीएससी परीक्षा नहीं हुई. भुखमरी की लहर में कई गरीब मर गए. मोब लिंचिंग की लहर चलने लगी. पांचवीं अनुसूची लागू करने वाले हजारों आदिवासियों पर देशद्रोह का मुकदमा ठोक दिया गया. लेकिन आंदोलन की आवाज कमजोर नहीं हुई और रघुवर सरकार को अंततः धुल चाटनी पड़ी.
गठबंधन सरकार मोदी-3 के आते ही झारखंड में राजनीतिक संकट पैदा करने की कोशिश में भाजपा फिर जुट गई है. एच ई सी को मरने के लिए छोड़ दिया गया है. वहां के श्रमिकों वेतन नहीं मिल रहा है. सार्वजनिक क्षेत्रों को बेचा जा रहा है. कॉरपोरेट लूट और सांप्रदायिक ध्रुवीकरण ने राज्य को लंबी तबाही में धकेल दिया है. झारखंड में बेरोजगारी दर 18% है- देश के औसत से दुगुना! निजीकरण, विस्थापन और बेरोजगारी के खिलाफ आवाज बुलंद करनी होगी! . हमें कॉरपोरेट लूट के खिलाफ खड़ा होना होगा.
‘80 दशक में झारखंड आंदोलन का केंद्र उत्तरी छोटानागपुर था. इसमें आदिवासियों के साथ मुलवासी, मजदूर और वंचित तबका था. मजदूर नेता कॉ ए के राय ने झारखंड आंदोलन में मजदूर आंदोलन की ताकत जोड़ दी. अगले दशकों में आर्थिक नाकेबंदी और भाकपा माले के जनसंघर्षों ने अलग राज्य के आंदोलन को मजबूती दी. मासस विधायक कॉ गुरूदास चटर्जी भूमि माफिया के खिलाफ संघर्ष में शहीद हो गए. राज्य निर्माण के बाद भाजपा सरकारों के लूटतंत्र के खिलाफ लड़ते हुए कॉ महेंद्र सिंह शहीद हो गए. मजदूर आंदोलन, झारखंड आंदोलन और जनसंघर्षों की दो धाराएं मार्क्सवादी समन्वय समिति और भाकपा माले आज कॉरपोरेट फासीवाद के खिलाफ एक हो रही हैं. यह विलय एक नये जन उभार को न्योता है.
9 सितंबर 2024 को धनबाद गोल्फ ग्राउंड मासस और भाकपा माले एक हो रहे हैं. 9 सितंबर की एकता रैली मजदूरों-किसानों-छात्रों-नौजवानों और महिलाओं की एकता रैली है. यह रैली कॉरपोरेट लूट और मोदी की तानाशाही के खिलाफ जनता की एकजुटता को की रैली है. आइए, 9 सितंबर को हजारों की गोलबंदी के जरिए झारखंड में बदलाव के संघर्ष की शुरुआत करें-
फासीवाद को नष्ट करो – कॉरपोरेट जाल को ध्वस्त करो!
राज्य के युवा बेरोजगार - लूटे अडाणी खनिज भंडार!
मासस भाकपा माले
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