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प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय

प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय,

(आध्यात्मिक ज्ञान एवं राजयोग प्रशिक्षण केन्द्र)
चौधरी बगान, हरित भवन के सामने हरमू रोड, रॉची-834001

मो0 सं0-09430142547, ई मेल ranchi@bkivv.org

भारत त्योहारों की भुमे है, जिसमें होली के त्योहार का एक विशेष महत्व है| होली का
त्योहार हम सभी बडी खुशी के साथ मनाते हैं, होलिका दहन करते हैं, एक दूसरे को बड़े प्यार
से रंग लगाते हैं। ये त्योहार ऐसे ही नहीं मनाते हैं बल्कि इसके पीछे आध्यात्मिक महीन रहस्य
छिपे हुए हैं। ये उदगार होली के अवसर पर प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय के
स्थानीय सेवा केन्द्र चौधरी बगान, हरम रोड़ में राजयोगिनी ब्रह्मकमारी निर्मला ने अभिव्यक्त
किए। उन्होंने कहा वास्तव में हमारे सभी त्योहार हमारी जीवन यात्रा से जुड़े हुए हैं, ये हमारे
ही दिव्य परिवर्तन की यादगार हैं। भारत में 33 करोड देवी देवताओं का गायन है और सभी
त्योहार किसी न किसी रूप में देवी देवताओं से संबंधित है। हम यह भी जानते हैं कि एक
समय था जब भारत सोने की चिड़िया हुआ करता था। जिसे हम स्वर्ग सतयुग कहते हैं और
इसी युग में इसी धरा पर 33 करोड देवी देवताएं थे। क्या हम जानते हैं वे अभी कहां हैं।
सृ"ट चक्र का नियम ही है युग परिवर्तन। सतयुग, त्रेता, द्वापर और कलियुग से गुजरते हुए
हम आत्माएं अपनी दिव्यता से दुर होते गये और देवता साधारण मनुष्य बन गये। पवित्रता,
शांति, प्रेम, सुख, समृद्धि जिसके हम अधिकारी हुआ करते थे। परंतु पॉच विकारों काम, क्रोध,
लोभ, मोह, अहंकार में गिरने से शोकवाटिका अर्थात कलियूग दुखों की दुनिया, नर्क में आ गऐ।
लेकिन अति के बाद अंत और घोर रात्रि के बाद नया सबेरा सूनिश्चित है।

उन्होंने कहा इस घोर कलियुग के बाद सतयुग लाना किसी भी साधारण आत्मा का
काम नहीं है और इसी लिए ऐसे समय में कल्प के अंत में निराकार परमात्मा शिव स्वयं इस
धरा पर अवतरित होते हैं सतयुग की स्थापना के लिए। परमात्म आवरण समय से लेकर
सतयुग की शुरूआत के समय को संगमयुग कहते हैं। हमारे सभी त्योहार वर्तमान समय की
यादगार है जब हम परमात्मा से सीधा संबंध जोड़कर अपने जीवन को सुखमय बनाते हैं और
सष्टि पर स्वर्ग निर्माण में अपना योगदान देकर पफिर से स्वर्ग के मालिक बनते हैं।

उन्होंने कहा होली आथ्ात् पवित्रता। विकारों पर जीत पाने से ही सतयुग की स्थापना
होती है। संस्कार परिवर्तन से विश्व परिवर्तन संभव है। परमात्मा हमें हमारे ओरिजनल संस्कारों
की याद दिलाते हैं, जिसमें पवित्रता मुख्य हैं। पवित्रता सुख शांति की जननी है सर्व प्राप्तियों
की चाबी है। पवित्रता का यथार्थ अर्थ सिर्फ ब्रह्मचर्य नहीं बल्कि मन--कर्म-वचन संपूर्ण रूप से
शुद्ध बनना है। जब हमें परमात्म दिव्य संदेश मिलता है और हम अपने जीवन में प्रैक्टकल में
पवित्रता की धारणा कर फिर से हमारे दैवी गुणों को इमर्ज करते हैं तब इस धरा पर सतयुग
आता है। होली का त्योहार पवित्रता की इसी धारणा का यादगार है।

आगे उन्होंने कहा वास्तव में परमात्मा का धरती पर अवतरित होना और हिरण्यकश्यप
(विकारों का प्रतीक) का वध कर प्रहलाद (पवित्रता का प्रतीक) की रक्षा करना ही वह महाघटना
है जिसकी याद में यह त्योहार मनाया जाता है। कल्प के अंतिम युग कलियुग और कलियुग के
भी अंतिम चरण में धर्म की अति ग्लानि हो जाती है और हिरण्यकश्यप जैसे लोगों का ही
बहुमत हो जाता है। राज्य कारोबार भी उनके हाथों में ही आ जाता है। वे लोग परमात्मा से
बेमुख होकर उनकी मत के विपरीत आचरण करते हुए मनमानी करते हैं। परमात्मा के मार्ग पर
चलने वालों पर अत्याचार होते हैं, कलंक लगते हैं, उन्हें सहयोग नहीं मिलता है। ये अल्पमत में
होते हैं। प्रहलाद ऐसे ही लोगों का प्रतिनिधित्वच करता है। प्रहलाद का अर्थ है वह पहला व्यक्ति
जिसको माध्यम बनाकर परमात्मा पिता सबको अल्हादित करते हैं। इस कर्तव्य की पूर्ति के लिए
परमात्मा पिता गुप्त रूप में धरती पर अवतरित होते हैं। होलिका रूपी विकारों की अग्नि से
बचाने के लिए योग अर्थात ईश्वरीय स्मृति रूपी चादर (कवच) देते हैं। ईश्वरीय याद के बल से
विकारों की अग्नि शीतल हो जाती है। ईश्वर से प्रेम करने वालों की जीत हो जाती है और
उनसे बेमूख करने वाली भावना का नाश हो जाता है। इसी की याद में पहले दिन होलिका
जलाई जाती है और अगले दिन एक दो से गले मिलकर एक दो को रंग लगाकर स्नेह मिलन
किया जाता है। इस अवसर पर नृत्य द्वारा खुशी व्यक्त किया गया।

ज्ञातब्य हो चौधरी बगान, हरमू रोड, ब्रह्माकुमारी केन्द्र में प्रतिदिन नि:शुल्क ज्ञान- योग
कार्यक्रम उपलध्ध है।

मानवता की सेवा में

(बरह्माकुमारी निर्मला)
केन्द्र प्रशासिका

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