-: ईद-अल-अज़हा या क़ुरबानी की ईद :-
(अरबी में عید الاضحیٰ; ईद-उल-अज़हा अथवा ईद-उल-अद्'हा - जिसका मतलब क़ुरबानी की ईद) इस्लाम धर्म में विश्वास करने वाले लोगों का एक प्रमुख त्यौहार है। इस्लामिक कैलेंडर में 12 महीने होते हैं और इसका धुल्ल हिज इसका अंतिम महीना होता है। इस महीने की दसवीं तारीख को ईद उल अजहा या बकरीद का त्योहार मनाया जाता है, जो कि रमजान का महीना खत्म होने के 70 दिन बाद आता है। इस्लामिक कैलेंडर के अनुसार, इस साल बकरीद का त्योहार गुरुवार, 29 जून को मनाया जा रहा है।
■ क्यों दी जाती है कुर्बानी-
मुस्लिम धर्म के लोग अल्लाह की रजा के लिए कुर्बानी करते हैं। हालांकि इस्लाम में सिर्फ हलाल के तरीके से कमाए हुए पैसों से ही कुर्बानी जायज मानी जाती है। इसमें बकरा, भेड़ या ऊंट जैसे किसी जानवर की कुर्बानी दी जाती है। कुर्बानी के वक्त ध्यान रखना होता है कि जानवर को चोट ना लगी हो और वो बीमार भी ना हो। आइए अब आपको बताते हैं कि बकरीद पर आखिर कुर्बानी क्यों दी जाती है।
■ कैसे शुरू हुई प्रथा?
इस्लाम में कुर्बानी का बहुत बड़ा महत्व बताया गया है। कुरान के अनुसार कहा जाता है कि एक बार अल्लाह ने हजरत इब्राहिम की परीक्षा लेनी चाही। उन्होंने हजरत इब्राहिम को हुक्म दिया कि वह अपनी सबसे प्यारी चीज को उन्हें कुर्बान कर दें। हजरत इब्राहिम को उनके बेटे हजरत ईस्माइल सबसे ज्यादा प्यारे थे। अल्लाह के हुक्म के बाद हजरत इब्राहिम ने ये बात अपने बेटे हजरत ईस्माइल को बताई। बता दें, हजरत इब्राहिम को 80 साल की उम्र में औलाद नसीब हुई थी, जिसके बाद उनके लिए अपने बेटे की कुर्बानी देना बेहद मुश्किल काम था, लेकिन हजरत इब्राहिम ने अल्लाह के हुक्म और बेटे की मुहब्बत में से अल्लाह के हुक्म को चुनते हुए बेटे की कुर्बानी देने का फैसला किया। हजरत इब्राहिम ने अल्लाह का नाम लेते हुए अपने बेटे के गले पर छुरी चला दी. लेकिन जब उन्होंने अपनी आंख खोली तो देखा कि उनका बेटा बगल में जिंदा खड़ा है और उसकी जगह बकरे जैसी शक्ल का जानवर कटा हुआ लेटा हुआ है, जिसके बाद अल्लाह की राह में कुर्बानी देने की शुरुआत हुई।
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