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श्रीमद्भागवत गीता ज्ञानयज्ञ का हुआ समापन

 श्रीमद्भागवत गीता ज्ञानयज्ञ का हुआ समापन

मैं शरीर हूं की भावना से ऊपर उठे मां : मां ज्ञान

प्राणी मात्र से प्रेम करना सिखलाती है गीता : मां ज्ञान

गिरिडीह  ---- श्री कबीर ज्ञान मंदिर गिरिडीह में श्रीमद्भागवत गीता जयंती के शुभ अवसर पर गीता ज्ञान महायज्ञ का आयोजन किया गया ।श्रीमद्भागवत गीता के दिव्य श्लोक के मंत्रोचार द्वारा यज्ञ हवन की आहुति दी गई । जिसमें हजारों की संख्या में श्रद्धालुओं की उपस्थिति रही । मंदिर प्रांगण में लोगों की खचाखच भीड़ भरी रही । हवन के पश्चात विशाल भंडारे का भी आयोजन किया गया जिसमें हजारों की संख्या में श्रद्धालुओं ने प्रसाद ग्रहण किया । इस अवसर पर सद्गुरु मां ज्ञान ने लोगों को संदेश देते हुए कहा कि गीता को मानने से ज्यादा जरूरी है गीता को जानना । गीता हमें क्या सिखाती है ? जीवन जीने की कला  । जीवन जिया कैसे जाए ? मोह, लालच, इर्ष्या, द्वेष से ऊपर उठकर मानव मात्र से प्रेम करना हमें गीता सिखलाती है । मानव मात्र से हम तभी प्रेम कर सकते है जब हम परिवार से प्रेम करना सीख लेंगे । हृदय में विस्तारित प्रेम को लबालब भरकर भाई –भाई का प्रेम, पिता –पुत्र का प्रेम, सास –बहु का प्रेम, ननद –भौजाई का प्रेम हो तो परिवार में सुख की गंगा बहेगी, यही हमें गीता सिखलाती है । गुरु मां ने आगे कहा कि आज हम लोगों का प्रेम सिमट कर अपने शरीर में केंद्रित हो गया है । शरीर को सुख देना है, शरीर को आराम देना है, लेकिन यह शरीर भी अपना साथ नहीं देता । एक दिन यह भी हमें छोड़कर चला जाता है ।इसीलिए जब तक शरीर में सांस है तब तक परमार्थ करते रहो यह गीता सिखलाती है ।  ईश्वर ने हमें शरीर का ढांचा इसलिए दिया ताकि हम इसके भीतर बसने वाले आत्मा का मिलन परमात्मा से करवा सके । शरीर का उपयोग इसी में है की जीवन से ईश्वर की बनाई हुई वस्तुएं और जीव की सेवा की जा सके । जब हम परमार्थ कार्य करेंगे तो हृदय में एक सुकून के अनुभूति होगी गीता का अध्ययन अध्यापन हमें जीवन के विभिन्न पहलुओं को समझने की क्षमता प्रदान करती है । गीता में कर्म योग भक्ति योग और शांति योग का समीकरण है । कर्म की प्रधानता गीता बतलाती है । हम जैसा कर्म करेंगे इसी अनुरूप हमारा व्यवहार होगा। इसलिए कर्मों की करने में सतर्कता होनी चाहिए मन वचन कर्म से कभी किसी का अहित न करें ।

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