सियासत की पिच पर हेमंत की फ्रंट फुट पर बैटिंग
झारखंड के मुख्यमंत्री और झारखंड मुक्ति मोर्चा के कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सोरेन सियासत की पिच पर कई चुनौतियों के बीच पिछले चार महीनों से फ्रंट फुट पर बैटिंग कर रहे हैं। केंद्रीय जांच एजेंसियों की कार्रवाई, विपक्ष के तेज हमले, राज्यपाल से टकराव, अदालतों के चक्कर के बीच भी वह अपने पॉलिटिकल एजेंडों के अनुरूप ताबड़तोड़ अहम फैसले ले रहे हैं। उनके बॉडी लैंग्वेज से लेकर भाषणों तक में आक्रामक अंदाज से साफ है कि सियासी तौर पर उन्होंने विपक्ष के ऊपर स्कोरिंग पोजीशन बरकरार रखी है।
हेमंत सोरेन की सरकार ने झारखंड विधानसभा के विशेष सत्र में जब आरक्षण, स्थानीयता और नौकरी से जुड़े दो विधेयक पारित कराए, तो प्रमुख विपक्षी पार्टी बीजेपी न तो कायदे से इनका विरोध कर पाई और न ही खुलकर समर्थन में खड़े होने का साहस दिखा पाई। इन विधेयकों का विरोध करने से ओबीसी, एससी-एसटी और स्थानीय-मूलवासी समुदाय के बीच प्रतिकूल संदेश जाने का खतरा था। वह समर्थन में भी खुलकर इसलिए नहीं आ सकी कि इनका श्रेय सीधे-सीधे हेमंत सोरेन और उनकी सरकार को जा रहा है। इसी धर्मसंकट की वजह से बीजेपी विशेष सत्र की कार्यवाही के दौरान बाउंड्री लाइन के बाहर खड़ी दिखी। दूसरी तरफ हेमंत सोरेन बीजेपी और केंद्रीय जांच एजेंसियों से लेकर प्रधानमंत्री तक पर आक्रामक तेवर में निशाना साधते रहे।
हालांकि विधानसभा से पारित दोनों विधेयकों में किए गए प्रावधान फिलहाल जमीन पर नहीं उतर पाएंगे, क्योंकि हेमंत सरकार ने इन्हें संविधान की नौवीं अनुसूची में शामिल करने का प्रस्ताव केंद्र को भेजने का फैसला किया है। नौवीं अनुसूची में शामिल कानून को सामान्यत: अदालतों में चुनौती नहीं दी जा सकती। यानी बहुत चालाकी से हेमंत सरकार ने गेंद केंद्र की बीजेपी सरकार के पाले में डाल दी है। केंद्र सरकार में ये मामले लटके तो जेएमएम और उसकी सहयोगी पार्टियों के लिए जनता के बीच यह नैरेटिव सेट करना आसान होगा कि बीजेपी ओबीसी, एससी-एसटी और झारखंड के स्थानीय समुदाय को उनके हक से वंचित रखना चाहती है। अगर केंद्र राज्य विधानसभा से पारित प्रस्ताव को हरी झंडी दे दे, तो भी हेमंत सरकार इसे अपनी जीत के तौर पर प्रचारित करेगी।
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