सोहराय पर्व आपसी मेलजोल सहभागिता. तथा प्रकृति की सम्मान का पर्व है : कोलेशवर सोरेन।
गिरिडीह --- सोहराय जो भारत के तीसरे बड़े आबादी वाले सन्थाल आदिवासियों का एक बड़ा पर्व है । जिसे वे बड़े ही धूमधाम के साथ युगों से मनाते आ रहे हैं । सोहराय पर्व सिर्फ नृत्य संगीत और विशेष खानपान तक ही सीमित नहीं है । यह आपसी मेलजोल सहभागिता और प्रकृति के प्रति सम्मान का एक बड़ा आयोजन है । जो पांच दिनों तक बड़े ही सादगी से मनाया जाता है । सोहराय पर्व एक तरह से कार्निवाल है जिसे समाज के सभी उम्र के लोग इसमें भाग लेते हैं और भरपूर आनंद लेते हैं । साथ ही अपने समाज की एकजुट करने का काम करते हैं । दुनिया मे कई बड़े बड़े पर्व त्यौहार है जिसे किताबों में दिखाया और पढ़ाया जाता है । लेकिन बहुत ही दुर्भाग्य है कि संथाल आदिवासियों के सोहराय जैसा बड़ा पर्व दुनिया के नजरों से अभी भी दूर है । इसकी सादगी सहभागिता और अनन्त उल्लास के बारे में दुनिया वाले को जानना बहुत जरूरी है । सोहराय पर्व सन्थाल आदिवासियों में खेती के शुरुआत से शुरू होता है, जब संथालो ने पशुओं को पालना और उसके सहारे खेती की ईजाद कि तभी से ये महापर्व चलते आ रहा है । संथालो ने कई जगह अपने सभ्यता बनाए और फिर उस जगह को छोड़कर दूसरे सभ्यता बनाए । कई मुश्किलों का सामना किए, कई उतार चढ़ाव देखे, युद्ध का सामना करना पड़ा और अपने सजे सजाए किला (गाढ़, जैसे चाय गाढ़, चम्पा गाढ़, बदौली गाढ़)को छोड़ा । पर्व और त्यौहार उन्हें फिर से इन मुश्किलों से उबरने और अपने सभ्यता संस्कृति को बनाने एवं संजोए रखने के लिए प्रेरित करते हैं । सोहराय पर्व का इंतजार उन्हें हर वर्ष रहता है क्योंकि यही एक पर्व है जिसमें अपने परिवार के सभी सदस्य एकजुट होते हैं और भरपूर आनंद उठाते हैं ।
0 Comments