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आनन्दमार्गियों का तीर्थ जमालपुर

आनन्दमार्गियों का तीर्थ जमालपुर
सज्जन कुमार गर्ग
जमालपुर:- राष्ट्रीय शितिज एवं एशिया महादीप में लौहनगरी जमालपुर प्रसिद्ध है,लेकिन अन्तराष्ट्रीय शितिज पर इस नगरी को प्रतिष्ठापित करने में आनन्दमार्ग के संस्थापक श्री  श्रीआनन्दमूर्ती का महत्वपूर्ण योगदान हैं, इस पूरी दुनिया को उन्होंने विवेकयुक्त अध्यात्मिक दशर्न और शारिरिक तन्दुरस्ती मानसिक एवं अध्यात्मिक विकाश हेतु प्रतिदिन उपभोग के लिए व्यवहारिक अनुशासन का सिद्धांत दिया। धर्मचयुत मानवता में धर्म के वास्तविक स्वरुप को प्रतिष्ठापित करने के लिए मानवतावाद का सिद्धांत दिया जब सम्पूर्ण मानवता घोर मानसिक कलुशता के अंधकार में दिग्भ्रमित हो आदर्श विहिन एवं धर्म विहिन हो जाती है तब महास्मभूति का आगवन होता है ऐसे ही महास्मभूति श्री श्रीआनन्दमूर्ति जी का अविभार्व जमालपुर के वलीपुर स्थित लक्ष्मी नारायण सरकार के घर 1921 में वैशाख पूर्णिमा के दिन हुआ जन्म के समय आकाश में उदीयमान सूर्य की लालिमा लिए हुए थी, के कारण घर वाले ने उनका नाम अरुण रखा, बाद में उन्होनें अपनी ओजस्विता और तेज को पूरी दुनिया में फेलाया। वाल्यवयस्था को पार कर उन्होनें प्रभात रंजन सरकार के रुप में अपनी शिक्षा, दिक्षा ग्रहण की। जमालपुर के प्रसिद्ध रेल कारखाना में जीवनयापन हेतु एकाउन्टेंट की नौकरी की जीविकापार्जन इनका मुख्य मकसद नहीं था बल्कि इनका मुख्य लक्ष्य मानवता उत्थान था। बचपन में जब इनकी आयु आठ वर्ष की थी उस समय जमालपुर के प्रसिद्ध काली पहाड़ी पर यह बाघ की पीठ पर सवार होकर घुमा करते थे, जो इनके सृष्टि जगत के समस्त प्राणियों से मित्रता के संदेश का प्रचायक था। बाबा आनन्दमूर्ति जो की इनका अध्यात्मिक नाम है। पांच वर्ष की उम्र से ही इस पहाड़ी स्थित इमली के पेड़ तथा व्याघ गुफा जो इनकी साधना स्थली थी, वहाँ जाते और कई कई राते तक साधना करते इस पहाड़ी के नीचे स्थित गोल्फ मैदान के बीचों बीच स्थित व्याघ्र कब्र और इसके निकटता के पेड़ इनकी रचनाशिलता तथा अध्यात्म चिंतन का मुख्य साक्षी है उन्होनें योगिक चिकित्सा व दुव्यकुण आनन्दसूत्रम् एवं आइडिया एवं आईडियोलोजि नामक पुस्तको की रचना की, बाबा अपने शिष्यों तथा भक्तों के दशर्न कर अभिभूत हुए, एम0एन0राय को नव्य मानवतावाद की दिशा में काम करने के लिए यहीं से प्रेरणा मिली। इसी स्थान पर सुभाष चंद्र बोस ने तंत्र साधना का अभ्यास किया था। जमालपुर के इसी धराधाम पर अपने दिव्य प्रकाश से अवसादग्रस्त मानवता को अभासित करने हेतु पांच जनवरी 1955 को रामपुर कॉलोनी के क्वार्टर में आनन्दमार्ग प्रचारक संघ की शुरुआत की । जो आज फिलीपीन्स आस्ट्रेलिया, अमेरिका, दक्षिण अफ्रिका, जर्मनी सहित विशव के दो सौ देशो में कार्यरत है, इसी रामपुर कॉलोनी के मैदान में आनन्दमार्ग का प्रथम धर्म-महाचक्र 9 जनवरी 1955 को आयोजित किया गया। अपने संकल्प की पूर्णाहुति हेतु लोगों को अध्यात्मिक साधना की दीक्षा देने लगे, इनके अनुयायियों की संख्या लगातार बढ़ती गई और आनंदमार्ग को पूरी दुनिया में फैलाया। 1966 में आनंदमार्ग का एडुकेशनल रिलिफ एण्ड वेलफेयर सेकशन नामक सामाजिक सेवा ईकाई में आनंदमार्ग इंस्टयुट औफ टेक्नोलीजी प्रांरभ की गयी,तथा 1970मेआनंदमार्ग युनिवर्सल रिलिफ टीम की अधार शिला रखी इस वर्ष राँची अमझरिया के निकट आनन्दमार्ग का अष्टधातरी मंत्र ‘‘ बाबा नाम केवलम‘‘ की प्रस्तुति लोगो के बीच कि गई, 1984में कर्नाडा सरकार द्वारा आंनदमार्ग को धार्मिक संगठन के रूप मे मान्यता दी गयी,1988 मे चीन की सरकार द्वारा प्रभात रंजन सरकार को फिचर ऑफ बर्ल्ड डवलमेंट इकॉनोमिक कल्चर, इकॉलोजी एण्ड एडुकेशनल पर सेमिनार में भाग लेने के लिए बुलाया गया ,यहाँ उन्होनें अपने प्रतिनिधी के रुप में आर्चाय रघुनाथ दादा को भेजा.,, आत्ममोक्षातम् जगत हितायम्‘‘ के महान उपदेश को लेकर आनन्दमार्ग के प्रतिष्ठापित करने के उपरांत 21अक्टूबर 1990 को कालीकट में उन्होनें अपने शरीर का प्रत्याग किया। जमालपुर आनन्दमुर्ति के जन्म स्थलीय एवं कार्य स्थली है,इस कारण यह आनन्द मार्गियों का तीर्थ है। यहाँ बाबा से जुड़े स्थल व्याघ्र कब्र काली पहाड़ी स्थित इमली का पेड़, व्याघ्रगुफा उनका कमरा आदि कई ऐसे स्थल है जिनके दशर्न कर आनन्दमार्गी धन्य हो उठते है। हरेक साल आयोजित होने वाले धर्म महासम्मेलन में आनन्द मार्गियों का समागम उनके प्रति आस्था का परिचायक है।

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