Translate

निर्मला देशपांडे: शांति, सद्भावना व एकता के लिए समर्पितनिमीशा सिंह

निर्मला देशपांडे: शांति, सद्भावना व एकता के लिए समर्पित
निमीशा सिंह
निर्मला देशपांडे प्रसिद्ध समाजसेवी और विनोबा की मानस पुत्री थीं। उनका पूरा जीवन संत विनोबा द्वारा बताए गए उद्देश्यों, सिद्धांतों और कार्यों को समर्पित था। वह पूरा जीवन उसी राह पर चलती रहीं। जीवन भर गरीबों, बेसहारा लोगों के लिए लड़ाई लड़ी।कमजोर लोगों की आवाज बुलंद की। समाज में व्याप्त समस्याओं के निराकरण के लिए अपना जीवन समर्पित करना कठिन कार्य होता है दूसरों के लिए जीना यह कहावत भी है। गांव, जिला, प्रदेश, देश की सीमाओं को लांघकर दुनिया की समस्याओं का हल ढूंढना जय जगत का स्पष्ट प्रतीक है दीदी निर्मला देशपांडे का जीवन जय जगत की धरोहर थी। निर्मला देशपांडे ग्राम स्वराज्य की प्रतिबिम्ब थीं। विनोबा विचार वाहिका के रूप में दुनिया उन्हें जानती थी। उनके लिए सारे देश अपने थे उन्हें हर देश में बहुत प्यार मिलता था।विनोबा विचार वाहिका के रूप में जिन्हें सारी दुनिया जानती तो थी ही परंतु प्यारी दीदी के रूप में मानती भी थी।दुनिया का कितना भी बड़ा व्यक्ति क्यों न हो हर व्यक्ति उन्हे संबोधन में दीदी ही कहता था।वह एक ऐसी ताकत थी जो दुनिया के किसी उलझे प्रश्न को हल करने के लिए कमर कस लेती थी।
“निर्मला देशपांडे का व्यक्तित्व बहुआयामी था। उन्होंने अपने विचारों एवं कार्यों से गांधी-विनोबा के जोड़ने के कार्यो को किया। वे अपने शत्रु से भी मैत्री भाव चाहती थीं इसीलिये गांधी विचार के मूल तत्व संवाद को इन्होंने ‘गोली नहीं बोली चाहिए’ का रूप देकर विपरीत परिस्थितियों में भी शांति सद्भाव का काम किया।” 
वे विश्व शाति, राष्ट्रीय एकता, सर्वधर्म समभाव तथा महिला सशक्तीकरण का अग्रणी पक्षधर थीं। उन्होंने संत विनोबा भावे के साथ भूदान आदोलन में लगभग 40 हजार किलोमीटर पदयात्रा की। इस दौरान विनोबा के सभी प्रवचनों को लिपिबद्ध कर 40 खंडों में भूदान गंगा की रचना। उन्होंने पड़ोसी देशों विशेष कर पाकिस्तान के लोगों के साथ मैत्री स्थापित करने के प्रयास किए। अपने जीवन काल में दो बार राज्यसभा की सदस्य मनोनीत हुई। वे पहली भारतीय महिला थी जिन्हें भारत सरकार ने पद्म विभूषण से अलंकृत किया। 
नागपुर में 19 अक्टूबर, 1929 को  जन्मीं निर्मला देशपांडे गांधीवादी विचारधारा से जुड़ी हुईं प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता थीं। इनके पिता साहित्यकार थे। इनके पिता पुरुषोत्तम यशवंत देशपांडे को मराठी साहित्य (अनामिकाची चिंतनिका) में उत्कृष्ट काम के लिए 1962 में साहित्य अकादमी पुरस्कार प्रदान किया गया था।
निर्मला देशपांडे ने अपना जीवन साम्प्रदायिक सौहार्द को बढ़ावा देने के साथ-साथ महिलाओं, आदिवासियों और अवसर से वंचित लोगों की सेवा में अर्पण कर दिया। निर्मला देशपांडे ने अनेक उपन्यास, नाटक, यात्रा तथा वृत्तान्त, विनोबा भावे की जीवनी भी लिखी थी।
दीदी निर्मला देशपांडे ने शांति, सद्भावना व एकता के लिए आजीवन किया काम
महात्मा गांधी और आचार्य विनोबा भावे की अहिंसक क्रांति के विचार को आत्मसात करके उसे आगे बढ़ाने वाली 
घर में खुला वातावरण था, जिसमें देश भर की महत्वपूर्ण व्यक्तित्वों का आना-जाना था और उनके साथ नन्ही निर्मला को संवाद के मौके मिलते थे। नागपुर से ही उन्होंने राजनीति विज्ञान में एम.ए. की पढ़ाई की और यहीं एक महाविद्यालय में प्राध्यापिका बन गर्ईं। समाज के कमजोर, दलित, वंचित, उत्पीड़ित तबकों व महिलाओं के साथ होने वाले अन्याय और भेदभाव को देखकर उनका मन व्याकुल रहता था और वह अपनी सुख-सुविधाएं त्याग कर संत विनोबा भावे के पवनार स्थित आश्रम में आ गईं।
विनोबा भावे के भूदान आंदोलन में उन्होंने 40 हजार किलो मीटर की पैदल यात्रा की। पूरी यात्रा में विनोबा भावे के प्रवचनों को उन्होंने ‘भूदान गंगा’ के नाम से कई खंडों में संकलित किया। भूदान आंदोलन आजाद भारत का अनोखा अहिंसक आंदोलन था, जिसके अंतर्गत 40 लाख एकड़ भूमि लोगों से दान में प्राप्त करके गरीबों और वंचितों में बांटी गई। विनोबा ने अपने गुरु महात्मा गांधी के कार्यों को आगे बढ़ाने के लिए शांति सेना का गठन किया था, जिसकी कमांडर उन्होंने निर्मला देशपांडे को नियुक्त किया। बाद में वह इंदौर स्थित शांति सेना विद्यालय की निर्देशिका बनीं।
निर्मला देशपांडे ने इंदिरा गांधी की मित्र व सचिव के रूप में कार्य किया। दीदी ने हरिजन सेवक संघ की अध्यक्षा के रूप में कार्य किया। अखिल भारतीय रचनात्मक समाज की स्थापना की। आतंकवाद से त्रस्त जम्मू-कश्मीर, 1984 में पंजाब, बिहार में नक्सलवाद और महाराष्ट्र में हिंसा के समय उन्होंने पदयात्राएं निकाल कर शांति का संदेश दिया। गुजरात में नरसंहार के दौरान वहां पहुंच कर पीड़ितों के जख्मों पर मरहम लगाया।
दीदी निर्मला देशपांडे ने पाकिस्तान के साथ दोस्ती का प्रबल समर्थन किया। इंडो-पाक सोल्जर इनिशिएटिव फॉर पीस इन इंडिया एंड पाकिस्तान की स्थापना की। अनेक देशों में महिला शांति दल का नेतृत्व किया। उनके योगदान के लिए उन्हें राजीव गांधी सद्भावना पुरस्कार व पद्मविभूषण सम्मान प्रदान किया गया। पाकिस्तान सरकार द्वारा उन्हें लोकप्रिय सरकारी सम्मान सितारा-ए-इम्तियाज से नवाजा गया। 1997 से 2007 तक राज्यसभा की सदस्या के रूप में दीदी ने महत्वूपर्ण भूमिका निभाई। देश के राष्ट्रपति पद के लिए भी उनका नाम चलाया गया था। उन्होंने विनोबा भावे की जीवनी लिखकर साहित्य को अमूल्य देन दी।निर्मला देशपांडे का 1 मई 2008 की सुबह नई दिल्ली स्थित आवास पर उनका देहांत हो गया।निर्मला देशपांडे एक ऐसी कार्यकर्ता थीं, जिन्होंने भारतीय राजनीति और सक्रियतावाद के इतिहास में एक अविस्मरणीय छाप छोड़ी और व्यवस्थागत उत्पीड़न के खिलाफ अथक संघर्ष किया।गांधीवादी विचारधारा का अभ्यास करना कोई आसान उपलब्धि नहीं थी, हालाँकि, निर्मला ने रास्ते में आने वाली चुनौतियों को स्वीकार किया और उनका स्वागत किया। उनका मानना ​​था कि गांधीवादी दर्शन भारत में सच्चे दीर्घकालिक लोकतंत्र को सुनिश्चित करने और प्राप्त करने का एकमात्र तरीका था। गांधीवादी सिद्धांतों में विश्वास करने वालों द्वारा दान की गई हजारों एकड़ भूमि इस महत्वपूर्ण आंदोलन के दौरान एकत्र की गई और निराश्रित और गरीब लोगों को वितरित की गई।
 निर्मला देशपांडे भारत में अस्पृश्यता उन्मूलन के लिए 1932 में महात्मा गांधी द्वारा स्थापित एक गैर-लाभकारी संगठन, हरिजन सेवक संघ की अध्यक्ष थीं ।
1984 में, निर्मला देशपांडे ने सामाजिक और सांप्रदायिक शांति, अंतर्राष्ट्रीय शांति, भाईचारे और एकता को बढ़ावा देने के लिए गांधीवादी संस्थानों और कार्यकर्ताओं के गठबंधन अखिल भारत सृजनात्मक समाज (एबीआरएस) की स्थापना की। उन्होंने नित्यानुतन पत्रिका की स्थापना भी की । यह पत्रिका वैश्विक शांति और शांतिवाद के लिए प्रतिबद्ध थी, और यह न्याय के अहिंसक और दयालु विचारों को फैलाने के लिए सबसे कुशल पत्रिकाओं में से एक थी।
निर्मला को पंजाब और कश्मीर में उन स्थानों के भीतर उच्च अस्थिरता की अवधि के दौरान शांति रैलियों के पीछे एक ड्राइविंग कारक होने के लिए भी जाना जाता था। राष्ट्रीय संघर्ष के प्रस्तावों के पीछे अक्सर प्रेरक शक्ति होने के अलावा, उन्हें अंतर्राष्ट्रीय मामलों में उनकी कूटनीति के लिए भी पहचाना जाता था।
1994 में कश्मीर में उनका शांति अभियान और 1996 में भारत और पाकिस्तान के बीच एक बैठक आयोजित करने का उनका प्रयास उनके जीवन की दो सबसे बड़ी उपलब्धियाँ थीं।

Post a Comment

0 Comments