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वक़्फ़ संसोधन बिल 2024, धार्मिक स्वतंत्रता और संघीय संरचना पर हमला। एनडीए सरकार मुस्लिम विरोधी एजेंडे पर काम कर रही है। तनवीर अहमद

वक़्फ़ संसोधन बिल 2024, धार्मिक स्वतंत्रता और संघीय संरचना पर हमला। एनडीए सरकार मुस्लिम विरोधी एजेंडे पर काम कर रही है। तनवीर अहमद

केंद्र की एनडीए सरकार द्वारा लोकसभा और राज्यसभा दोनों सदनों में विवादास्पद वक़्फ़ संशोधन बिल पारित कराए जाने के खिलाफ देशभर में विरोध की लहर दौड़ गई है। मैं तनवीर अहमद  सामाजिक कार्यकर्त्ता  इस बिल की कड़ी आलोचना करता हैं,  यह बिल मुस्लिम समाज के अधिकारों और धार्मिक संस्थाओं पर सीधा हमला है। “वक़्फ़ बोर्ड देशभर में मुसलमानों की सामाजिक, धार्मिक और शैक्षणिक गतिविधियों का एक अहम केंद्र है। जिसमें मुस्लिम समाज के गरीबों, यातमों बेवाओं, मिस्किनों और कमज़ोर तबके के लोगों को लाभ हुआ करता हैं। लेकिन बीजेपी सरकार इस संस्था को कमजोर करके मुसलमानों की जड़ों को हिलाने की साज़िश कर रही है। मुसलमानों के साथ दुश्मन जैसा व्यवहार कर रही है।  

सबसे शर्मनाक बात यह है कि एनडीए के घटक दल जिसमें मुख्यरूप से नितीश कुमार (जेडीयू), चंद्रबाबू नायडू (टीडीपी), चिराग पासवान (एलजेपी), जयन्त चौधरी (आरएलडी), अजित पवार (एनसीपी), एचडी देवगौड़ा (जेडीएस) और अन्य सहयोगियों ने भी इस बिल को समर्थन देकर मुसलमानों के हितों के साथ गद्दारी की है।” जिन सांसदों ने मुस्लिम वोटों के सहारे संसद तक का सफर तय किया, उनका इस विधेयक पर समर्थन या चुप्पी बेहद शर्मनाक और विश्वासघातपूर्ण है। ये नेता आने वाले समय में मुस्लिम समाज के सामने माफी के योग्य नहीं रहेंगे। 
मेरा मानना है कि यह बिल न केवल वक़्फ़ की स्वायत्तता को खत्म करता है, बल्कि राज्य सरकारों की भूमिका को भी नजरअंदाज़ करता है। इस संशोधन के माध्यम से वक़्फ़ संपत्तियों की निगरानी और नियंत्रण के नाम पर सरकारें हस्तक्षेप कर सकेंगी, जो कि अल्पसंख्यक समुदाय के धार्मिक अधिकारों का उल्लंघन है। इस बिल के तहत वक़्फ़ बोर्ड में गैर-मुस्लिम सदस्य को शामिल करने का प्रस्ताव किया गया है, जो धार्मिक संस्थाओं के मामलों में हस्तक्षेप का रास्ता खोलेगा।  

वक़्फ़ बिल 2024 सिर्फ मुस्लिम समुदाय के लिए नहीं, बल्कि पूरे देश के लिए चिंता का विषय बन चुका है। यह केवल एक धार्मिक अधिकार का सवाल नहीं है, बल्कि यह पुरे भारतीय समाज में समानता, धर्मनिरपेक्षता और स्वतंत्रता के मूल्यों पर भी हमला करता है। उन्होंने कहा कि अगर यह बिल लागू हुआ तो न केवल मुस्लिम, बल्कि अन्य धार्मिक अल्पसंख्यक समुदायों के अधिकारों पर भी खतरा मंडरा सकता है।

मैं झारखंड सरकार से विशेष सत्र बुलाकर इस बिल को राज्य में लागू नहीं करने का निर्णय लेने की मांग करता हूँ और देशभर के सामाजिक संगठनों, मुस्लिम धार्मिक नेताओं और विपक्षी पार्टियों से अपील की कि वे इस बिल के खिलाफ एकजुट होकर लोकतांत्रिक और कानूनी तरीके से आंदोलन छेड़ें।  "अगर आज हम चुप रहे तो आने वाली नस्लें हमें माफ नहीं करेंगी। यह समय है एकजुट होने का, संविधान और अपने धार्मिक अधिकारों की रक्षा के लिए खड़े होने का।"हम वक़्फ़ संपत्तियों की रक्षा के लिए हर कानूनी और लोकतांत्रिक मंच पर संघर्ष जारी रखेंगे। यह लड़ाई केवल एक समुदाय की नहीं, बल्कि भारत के संविधान और न्याय की रक्षा की लड़ाई है।

तनवीर अहमद
सामाजिक कार्यकर्ता
9431101861

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