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26 मार्च को डीआरडीए सभागार, गोड्डा समाहरणालय में जिला विधिक सेवा प्राधिकार, गोड्डा के तत्वावधान में मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण के संबंध में एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया।

 26 मार्च को डीआरडीए सभागार, गोड्डा समाहरणालय में जिला विधिक सेवा प्राधिकार, गोड्डा के तत्वावधान में मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण के संबंध में एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया। कार्यशाला के माध्यम से सिविल कोर्ट, गोड्डा के वरीय पदाधिकारियों के द्वारा जिला प्रशासन के विभिन्न विभागों के पदाधिकारियों एवं सभी थानों के पुलिस पदाधिकारियों को मोटर वाहन जनित दुर्घटना की रोकथाम, घायलों की मदद और पीड़ितों को राहत अनुदान के कानूनी आयामों के बारे में विस्तृत प्रशिक्षण दिया गया।
कार्यशाला का उद्घाटन प्रधान जिला जज, गोड्डा, उपायुक्त, गोड्डा, पुलिस अधीक्षक, गोड्डा, प्रधान जिला जज, कुटुंब न्यायालय, गोड्डा, उप विकास आयुक्त, गोड्डा एवं , सचिव, जिला विधिक सेवा प्राधिकार, गोड्डा द्वारा दीप प्रज्ज्वलित कर किया गया।
कार्यशाला को संबोधित करते हुए प्रधान जिला जज, गोड्डा द्वारा बताया गया कि माननीय सर्वोच्च न्यायालय के द्वारा सड़क दुर्घटना में घायल हुए व्यक्तियों के संबंध में  गुड सेमेरिटन के प्रावधान को लागू करने का निर्णय दिया गया है। इसके अंतर्गत सड़क दुर्घटना में घायल व्यक्ति को अस्पताल पहुंचाने में मदद करने वाले व्यक्ति को अपनी पहचान उजागर करने के लिए बाध्य नहीं किया जाएगा। वह स्वेच्छा से अपना नाम पता बता सकता है। गुड सेमेरिटन व्यक्ति के लिए सरकार की तरफ से प्रोत्साहन राशि के तौर पर पारितोषिक भी देने का प्रावधान किया गया है।*
*उपायुक्त, गोड्डा द्वारा इस अवसर पर बताया गया कि सड़क दुर्घटना के अवसर पर बहुत सारे लोग महज दर्शक बने रहते हैं। कुछ व्यक्ति जो  घायल की मदद की इच्छा रखते भी हैं, वे पुलिस प्रक्रिया एवं कानूनी उलझन के डर से चाह कर भी मदद को आगे नहीं आते। पिछले 6 माह में गोड्डा जिले में गुड सेमेरिटन  के तौर पर किसी भी व्यक्ति को पुरस्कृत करने का एक भी उदाहरण नहीं आया है। यह आवश्यक नहीं कि दुर्घटना के समय पुलिस या प्रशासन का कोई अधिकारी घटनास्थल पर मौजूद हो, उन्हें पहुंचने में वक्त लग सकता है। ऐसी स्थिति में आम नागरिकों का सहयोग भी अपेक्षित है, जो गुड सेमेरिटन  के तौर पर आगे आकर घायल पड़े व्यक्ति को गोल्डन आवर में चिकित्सा सहायता दिलाने में मदद कर सकते हैं। सरकार के द्वारा ऐसे नेक व्यक्तियों को किसी भी कानूनी बाध्यता से मुक्त करने एवं  सिविल सर्जन के माध्यम से स्वास्थ्य  विभाग द्वारा पुरस्कृत करने का प्रावधान भी लागू किया गया है। जिला प्रशासन द्वारा भी ऐसे नेक व्यक्तियों को रोल मॉडल बनाते हुए प्रशस्ति पत्र प्रदान किया जाएगा । कई बार पीड़ित की अपनी गलती से भी वह दुर्घटना का शिकार हो जाता है पर आम धारणा ज्यादातर बड़ी गाड़ी को ही दोषी मानने की रही है। मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण का उद्देश्य है कि मोटर वाहन जनित दुर्घटना के पीड़ित या दोषी , सभी को न्याय मिले। सड़क दुर्घटना की रोकथाम, घायल की मदद और मुआवजा सुनिश्चित करने में न्यायपालिका, परिवहन, पुलिस, स्वास्थ्य, जनसंपर्क विभागों के साथ साथ मीडिया और आम नागरिकों की भी प्रमुख भूमिका है।*
*पुलिस अधीक्षक, गोड्डा द्वारा कार्यशाला को संबोधित करते हुए बताया गया कि प्राकृतिक आपदा , आतंकवादी घटनाओं से ज्यादा मौतों का कारण सड़क दुर्घटना है। पुलिस में दर्ज होने वाले केसों का 5 प्रतिशत दुर्घटनाओं से संबंधित होता है।
ट्रैफिक नियम उल्लंघन के लिए लगाए जाने वाले जुर्माने का उद्देश्य राजस्व बढ़ाना नहीं, बल्कि  लोगों को ट्रैफिक अनुशासन के प्रति सचेत कर उनकी जान माल की रक्षा करनी है। सड़क दुर्घटनाओं में रोकथाम, घायलों की मदद और मुआवजा पर विचार करने के लिए जिले में सड़क सुरक्षा समिति की नियमित बैठक हो रही है। सभी थानों में स्वास्थ्य विभाग की तरफ से स्ट्रेचर, फर्स्ट एड किट उपलब्ध कराया गया है। साथ ही सभी थानों में 5 पुलिसकर्मियों को फर्स्ट एड प्रदान करने का प्रशिक्षण दिया गया है।
इसके उपरांत अशोक कुमार, प्रधान जिला जज, कुटुंब न्यायालय एवं  श्री शिवपाल सिंह,एडीजे प्रथम द्वारा कार्यशाला में भाग लेने वाले पदाधिकारियों को मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण से जुड़े प्रावधानों के बारे में विस्तार से जानकारी दी गई। दुर्घटना की स्थिति में घायल के पहले 10 मिनट को प्लेटिनम मिनट और पहले घंटे को गोल्डन आवर कहा गया है। यदि इस अवधि में गंभीर रूप से घायल व्यक्ति को चिकित्सा सहायता उपलब्ध कराई जाए तो उसकी जान बच सकती है। घायल की मदद के लिए आगे आने पर पुलिस कार्यवाही में फंसने की सामान्य  धारणा में बदलाव की जरूरत है। मोटर वाहन कानून में गुड सेमेरिटन को संरक्षण के प्रावधान को शामिल किया गया है।*
मोटर वाहन जनित दुर्घटना मामलों  में पुलिस के जांच अधिकारी के द्वारा काफी साइंटिफिक इन्वेस्टिगेशन करने की आवश्यकता है, क्योंकि एफआईआर में दी गई जानकारी ही आगे चलकर दोष निर्धारण एवं मुआवजा राशि के निर्धारण का आधार बनती है। गाड़ियों का इंश्योरेंस भी अपडेट रहने की आवश्यकता है।* *दुर्घटना में शामिल वाहन के थर्ड पार्टी इंश्योरेंस नहीं होने पर जांच अधिकारी द्वारा उसे नहीं छोड़ा जाना चाहिए। मोटर वाहन दुर्घटना में न्यायाधिकरण द्वारा मुआवजा निर्धारण के मामले में पुलिस जांच अधिकारी, डीटीओ, बीमा कंपनियों की भूमिका पर भी विस्तार से चर्चा की गई।
जुगाड गाड़ियों पर मोटर वाहन कानून के कई प्रावधानों के नहीं लागू होने , साथ ही बीमा कवरेज के दायरे से बाहर रहने के कारण उनसे होने वाली दुर्घटनाओं की स्थिति में पीड़ित को मिलने वाले मुआवजे में लीगल समस्या की भी जानकारी कार्यशाला में दी गई । कार्यशाला में यह भी जानकारी दी गई कि कानूनी तौर पर कोई भी गैर बीमित मोटर वाहन शोरूम या गैरेज से बाहर नहीं निकलना चाहिए।
उक्त अवसर पर  बार काउंसिल के सदस्य, विभिन्न बीमा कंपनियों के प्रतिनिधि भी उपस्थित थे।

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